साक्षात् भगवान के मुख से निकली
हुई श्रीमद भगवत गीता एक रहस्यमय ग्रन्थ है |
भगवान के नाम, रूप, गुण, प्रभाव, उपासना, कर्म तथा ज्ञान का वर्णन जैसा गीता मैं है वैसा अन्य ग्रंथो
मैं एक साथ मिलना कठिन है |
वेद व्यास जी ने महाभारत में
कहा है -- गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यै: शास्त्र विस्तारै: ॥
सर्व शास्त्र मयी गीता ॥
सभी शास्त्रो का मूल है वेद ,, वेद ब्रह्मा जी के मुख से प्रकट
हुए हैं ,, ब्रह्मा जी भगवान के नाभि कमल से प्रकट हुए हैं।
[ देखा जाए तो ] गीता गंगा से भी बढ़कर है
गंगा स्नान करने से स्नान करने वाले को मुक्ति मिल जाती है पर वो व्यक्ति
दूसरो को मुक्ति नहीं दे सकता। दूसरी और गीता से व्यक्ति स्वयं तो
मुक्त हो ही सकता है - वो दूसरो को भी मुक्त कर सकता है।
गीता को भगवान से भी बढकर कहा जा
सकता है --- वाराह पुराण में स्वयं भगवान कहते हैं ---
गीता श्रयेहम तिष्ठामि गीता
में च उत्तमं गृहम। गीता ज्ञानमुपाश्रित्य त्रीन्लोकान पालयाम्यहम।।
गीता भगवान का श्वास है , ह्रदय है, भगवान की वांग्मयी [ शब्द मयी ] मूर्ति है , भगवान का रहस्यमय आदेश है।
श्री कृष्ण के मुख से निकली हुई
गीता जी का संकलन व्यास जी ने एक लाख श्लोक परिमाण [संख्या ]
वाले महाभारत में किया।
भीष्म पर्व के 25 वें अध्याय से गीता का प्रारम्भ
होता है. इसमे 18 अध्याय 700 श्लोक हैं।
गीता का मुख्य तात्पर्य जीव को [ मनुष्य को ] परमात्मा की
प्राप्ति कराना है | इस सम्बन्ध मैं अनेक उपाय बताये है।
परमात्मा की प्राप्ति हेतु मैं
मुख्य रूप से दो मार्ग बताए हैं -1 ज्ञान मार्ग यानि कर्म संन्यास
२-कर्म मार्ग यानि कर्तव्य का पालन करना।
जो पुरुष सभी करमो को परमात्मा में अर्पण करके ओर
आसक्तिको त्याग कर कर्म करता है वह पुरुष जल में कमल के पत्ते की भाँति पाप से
लिप्त नहीं होता। वह भगवत्प्राप्ति रूप परम शान्ति को प्राप्त होता है।





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