श्री गुरु पूर्णिमा के दिव्य पावन अवसर पर वैदिक साधना पीठ- नरौरा पर आगरा, हरिगढ़, आदि स्थानों से पधारे सनातन धर्म प्रेमी श्रद्धालु भक्तजनों ने आचार्यगुरु ललितानंद व्यास जी महाराज के निर्देशन में श्री गणपति स्मरण पूर्वक सृष्टि के सर्वप्रथम गुरु देवाधिदेव महादेव का पूजन किया | इसके उपरांत ज्ञानियों में अग्रगण्य श्री हनुमान जी महाराज के श्री चरणों में वंदन स्वरूप श्री हनुमान चालीसा का पाठ किया गया | सभी शिष्य, यजमान, भक्तजनों ने आचार्यगुरु ललितानंद जी के प्रति यथा शक्ति श्रद्धा सुमन अर्पित करेक उनका आशीर्वाद प्राप्त किया |
आचार्यगुरु ललितानंद व्यास जी महाराज ने अपने प्रवचनों के माध्यम से गुरु की आवश्यकता पर प्रकाश डाला | उन्होंने बताया की गुरु शिष्य एक परम्परा है जो सृष्टि काल से चली आ रही है | गुरु शिष्य परम्परा सनातन हिन्दू धर्म की तो नींव है | शिष्य को गुरु से सभी अच्छी बातें ले लेनी चाहिए | यदि गुरु में कोई बुराई हो तो उसको ग्रहण नहीं करना चाहिए | गुरु भगवत्प्राप्ति/आत्मशांति/ के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है | गुरु भगवान नहीं है | जो भी गुरु अपने चित्र की पूजा करवाए, गले में पहनाये, भगवान से ऊपर/ज्यादा खुद को घोषित करे वो गुरु नहीं गुरुर/अभिमानी /अहंकारी /घमंडी होता है | ऐसे गुरुओं से / लोगों से दूर रहना चाहिए |
सबसे महत्त्व पूर्ण और ध्यान देने योग्य बात ये है की गुरु किसको बनायें, कैसे बनाएं, ये जानकारी वतमान में बहुत काम लोगों को है | आचार्यगुरु जी ने बताया की इन सब बातो की जानकारी सभी आम लोगों को होनी चाहिए इसके लिए सरल हिंदी भाषा में "गुरु किसको बनाएं" नाम की पुस्तक प्रकाशित की गई है | जो गुरु शिष्य परम्परा की आवश्यकता, गुरु की पात्रता, गुरु मन्त्र आदि के विषय का ज्ञान देगी | आचार्यगुरु जी के प्रवचनों के उपरांत सभी भाई - बहिनों ने भगवद भजनों का वाचन और श्रवण किया | भजनों के वाचन में एंजल प्ले स्कूल की शिक्षिकाओं ने बहुत सुन्दर सहभागिता की |
चूँकि गुरु पूर्णिमा की रात्री में चंद्र ग्रहण होने से सूतक काल दोपहर 02 - 54 से प्रारम्भ होने के कारण सूतक काल प्रारम्भ होने से पूर्व ही सभी उपस्थित जनों को भोजन प्रसाद करके विदा किया गया | कुछ श्रद्धालु आचार्यगुरु जी के सानिद्ध्य में ग्रहण काल में साधना हेतु रुके रहे ||
आचार्यगुरु ललितानंद व्यास जी महाराज ने अपने प्रवचनों के माध्यम से गुरु की आवश्यकता पर प्रकाश डाला | उन्होंने बताया की गुरु शिष्य एक परम्परा है जो सृष्टि काल से चली आ रही है | गुरु शिष्य परम्परा सनातन हिन्दू धर्म की तो नींव है | शिष्य को गुरु से सभी अच्छी बातें ले लेनी चाहिए | यदि गुरु में कोई बुराई हो तो उसको ग्रहण नहीं करना चाहिए | गुरु भगवत्प्राप्ति/आत्मशांति/ के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है | गुरु भगवान नहीं है | जो भी गुरु अपने चित्र की पूजा करवाए, गले में पहनाये, भगवान से ऊपर/ज्यादा खुद को घोषित करे वो गुरु नहीं गुरुर/अभिमानी /अहंकारी /घमंडी होता है | ऐसे गुरुओं से / लोगों से दूर रहना चाहिए |
सबसे महत्त्व पूर्ण और ध्यान देने योग्य बात ये है की गुरु किसको बनायें, कैसे बनाएं, ये जानकारी वतमान में बहुत काम लोगों को है | आचार्यगुरु जी ने बताया की इन सब बातो की जानकारी सभी आम लोगों को होनी चाहिए इसके लिए सरल हिंदी भाषा में "गुरु किसको बनाएं" नाम की पुस्तक प्रकाशित की गई है | जो गुरु शिष्य परम्परा की आवश्यकता, गुरु की पात्रता, गुरु मन्त्र आदि के विषय का ज्ञान देगी | आचार्यगुरु जी के प्रवचनों के उपरांत सभी भाई - बहिनों ने भगवद भजनों का वाचन और श्रवण किया | भजनों के वाचन में एंजल प्ले स्कूल की शिक्षिकाओं ने बहुत सुन्दर सहभागिता की |
चूँकि गुरु पूर्णिमा की रात्री में चंद्र ग्रहण होने से सूतक काल दोपहर 02 - 54 से प्रारम्भ होने के कारण सूतक काल प्रारम्भ होने से पूर्व ही सभी उपस्थित जनों को भोजन प्रसाद करके विदा किया गया | कुछ श्रद्धालु आचार्यगुरु जी के सानिद्ध्य में ग्रहण काल में साधना हेतु रुके रहे ||
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