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Wednesday, 14 September 2016

अनंत चतुर्दशी व्रत


[ स्कंद पुराण , ब्रहम पुराण , भविश्यादि पुराण के अनुसार ]
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी का व्रत किया जाता है। 
अनंत देव भी भगवान विष्णु का ही एक नाम है। 
अनंत धागे में चौदह गांठे होती हैं। 
अनंत मै 14 गांठें हरि द्वारा उत्पन्न 14 लोकों की प्रतीक हैं।
अनंत चतुर्दशी पर कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर से कही गई कौण्डिन्य एवं उसकी स्त्री शीला की गाथा भी सुनाई जाती है।
भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी के दिन यह व्रत पूजन नदी-तट पर अथवा घर में ही स्थापित मंदिर के सामने किया जाता है ; 
प्रात:काल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त होकर कलश की स्थापना करें। 
कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में भगवान विष्णु की स्थापना की जाती है। 
इसके आगे कुंकूम, केसर या हल्दी से रंग कर बनाया हुआ कच्चे डोरे का चौदह गांठों वाला 'अनंत' भी रखा जाता है। 
भगवान विष्णु का आह्वान तथा ध्यान करके गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें। तत्पश्चात हरि से इस प्रकार की प्रार्थना की जाती है- 'हे वासुदेव, इस अनंत संसार रूपी महासमुद्र में डूबे हुए हम लोगों की रक्षा करो । हे अनंत रूप वाले प्रभु तुम्हें नमस्कार है।'

  तत्पश्चात अनंत देव का ध्यान करके शुद्ध अनंत को पुरुष अपनी दाहिनी भुजा पर तथा स्त्रियां बायी भुजा पर बांध लें। 
नए अनंत को धारण करके पुराने का त्याग कर देना चाहिए। 
यह अनंत [धागा]  भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देने वाला माना गया है। 
इस दिन सत्यनारायण का व्रत और कथा का आयोजन भी प्राय: किया जाता है। 
जिसमें सत्यनारायण की कथा के साथ-साथ अनंत देव की कथा भी सुनी जाती है।

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