सृष्टि के प्रारंभ में भगवान नारायण की नाभि से उत्पन्न कमल के पुष्प से प्रकट हुए ब्रह्मा जी | ब्रह्मा जी ने इस संसार का निर्माण किया | इस विश्व का निर्माण करते हुए ब्रह्माजी से मरीचि ऋषि हुए, मरीचि से कश्यप ऋषि और कश्यप ऋषि से विवस्वान नाम के सूर्य हुए | उन्हीं सूर्य का जो वंश है उसी को सूर्यवंश कहा जाता है | इसी प्रकार ब्रह्माजी से हुए अत्रि नाम के ऋषि, अत्रि ऋषि के नेत्रों से हुए चंद्रमा, इन्हीं चंद्रमा के वंश का नाम चंद्रवंश है | सूर्यवंश में भगवान श्रीराम का जन्म हुआ और चंद्रवंश में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ |
चंद्रवंश में एक राजा हुए शांतनु ! शांतनु की पहली पत्नी गंगाजी से एक पुत्र हुए, जिनका नाम था देवव्रत, जो आगे चलकर भीष्म कहलाये | शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य | चित्रांगद युद्ध में गंधर्वों के द्वारा मारे गए | इसके बाद विचित्रवीर्य को राजा बनाया गया | विचित्रवीर्य का विवाह अंबिका और अंबालिका नाम की कन्याओं से हुआ | विचित्रवीर्य क्षय रोग से पीड़ित होकर के नि:संतान ही मृत्यु को प्राप्त हो गए | वेदव्यास जी की कृपा से अंबिका के द्वारा जन्म से अंधे धृतराष्ट्र का और अंबालिका के द्वारा पीलिया से ग्रस्त पांडू का जन्म हुआ | अंबिका की दासी के द्वारा विदुर जी का जन्म हुआ | धृतराष्ट्र के सौ पुत्र और एक पुत्री हुई | सौ पुत्रों का नाम अलग अलग होने पर भी उनको 'कौरव' कहा जाता था | एक पुत्री का नाम 'दुश्शला' था, इसका विवाह जयद्रथ से हुआ था |
धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे, इसलिए धृतराष्ट्र के छोटे भाई पांडु को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया | महाराज पांडु की दो पत्नियां हुई कुंती और माद्री | पांडू की पत्नी कुंती को देवताओं की कृपा से तीन पुत्रों [युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन] की प्राप्ति हुई और माद्री के द्वारा दो पुत्रों [नकुल, सहदेव ] का जन्म हुआ | एक ऋषि के शाप के कारण से पांडु की मृत्यु हो गई | जब पांडु मृत्यु को प्राप्त हो गए तो परिस्थिति वश जन्म से अंधे धृतराष्ट्र को राजा बनाया गया, क्योंकि उस समय पांडव छोटे थे | युवा होने पर पांडवों को इंद्रप्रश्थ का राज्य दे दिया | बाद में कौरवों ने पांडवों से धोखा करके उनका सारा राजपाट छीन लिया | पांडवों ने कौरवों को समझाने बुझाने का बहुत प्रयास किया, किंतु कौरवों ने राज्य देने से मना कर दिया | भगवान श्री कृष्ण शांति दूत बनकर गए तो दुर्योधन ने कह दिया - सूच्याग्रे नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव ! अर्थात - युद्ध के बिना सूई की नोक के बराबर भी भूमि नहीं दूंगा | युद्ध की घोषणा हो गई कौरव और पांडवों की सेना ने कुरुक्षेत्र में आमने सामने खड़ी हो गई |
कौरव पांडवों के प्रारम्भ में श्री वेदव्यास जी ने धृतराष्ट्र को कहा कि यदि आप महाभारत का युद्ध देखना चाहते हैं तो मैं आपको दिव्य नेत्र दे सकता हूं, धृतराष्ट्र ने मना कर दिया | लेकिन कहा कि मैं महाभारत के युद्ध का समाचार जानना चाहता हूं इसलिए आप संजय को दिव्य नेत्र दे दीजिए | यह यहीं बैठ करके मुझको महाभारत का सत्य समाचार देते रहेंगे | वेदव्यास जी ने संजय को दिव्य नेत्र दे दिए | युद्ध प्रारंभ हो गया | युद्ध के दसवें दिन अर्जुन ने भीष्म पितामह को अपने बाणों से छलनी कर दिया | संजय ने जाकर धृतराष्ट्र को बताया कि भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से भूमि पर गिर पड़े हैं | तब धृतराष्ट्र ने कहा कि मुझे महाभारत के युद्ध के प्रारंभ से लेकर सारा वृत्तांत सुनाओ | संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत के युद्ध के प्रारंभ से जानकारी देना प्रारंभ किया यहां से श्रीमद्भगवद्गीता का प्रारंभ होता है | श्रीमद्भगवद्गीता कोई अलग ग्रंथ नहीं है, यह महाभारत में भीष्म पर्व का पच्चीसवां अध्याय है | महाभारत के भीष्म पर्व का पच्चीसवां अध्याय श्रीमद्भगवतगीता का पहला अध्याय है |
चंद्रवंश में एक राजा हुए शांतनु ! शांतनु की पहली पत्नी गंगाजी से एक पुत्र हुए, जिनका नाम था देवव्रत, जो आगे चलकर भीष्म कहलाये | शांतनु की दूसरी पत्नी सत्यवती से दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य | चित्रांगद युद्ध में गंधर्वों के द्वारा मारे गए | इसके बाद विचित्रवीर्य को राजा बनाया गया | विचित्रवीर्य का विवाह अंबिका और अंबालिका नाम की कन्याओं से हुआ | विचित्रवीर्य क्षय रोग से पीड़ित होकर के नि:संतान ही मृत्यु को प्राप्त हो गए | वेदव्यास जी की कृपा से अंबिका के द्वारा जन्म से अंधे धृतराष्ट्र का और अंबालिका के द्वारा पीलिया से ग्रस्त पांडू का जन्म हुआ | अंबिका की दासी के द्वारा विदुर जी का जन्म हुआ | धृतराष्ट्र के सौ पुत्र और एक पुत्री हुई | सौ पुत्रों का नाम अलग अलग होने पर भी उनको 'कौरव' कहा जाता था | एक पुत्री का नाम 'दुश्शला' था, इसका विवाह जयद्रथ से हुआ था |
धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे, इसलिए धृतराष्ट्र के छोटे भाई पांडु को हस्तिनापुर का राजा बनाया गया | महाराज पांडु की दो पत्नियां हुई कुंती और माद्री | पांडू की पत्नी कुंती को देवताओं की कृपा से तीन पुत्रों [युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन] की प्राप्ति हुई और माद्री के द्वारा दो पुत्रों [नकुल, सहदेव ] का जन्म हुआ | एक ऋषि के शाप के कारण से पांडु की मृत्यु हो गई | जब पांडु मृत्यु को प्राप्त हो गए तो परिस्थिति वश जन्म से अंधे धृतराष्ट्र को राजा बनाया गया, क्योंकि उस समय पांडव छोटे थे | युवा होने पर पांडवों को इंद्रप्रश्थ का राज्य दे दिया | बाद में कौरवों ने पांडवों से धोखा करके उनका सारा राजपाट छीन लिया | पांडवों ने कौरवों को समझाने बुझाने का बहुत प्रयास किया, किंतु कौरवों ने राज्य देने से मना कर दिया | भगवान श्री कृष्ण शांति दूत बनकर गए तो दुर्योधन ने कह दिया - सूच्याग्रे नैव दास्यामि बिना युद्धेन केशव ! अर्थात - युद्ध के बिना सूई की नोक के बराबर भी भूमि नहीं दूंगा | युद्ध की घोषणा हो गई कौरव और पांडवों की सेना ने कुरुक्षेत्र में आमने सामने खड़ी हो गई |
कौरव पांडवों के प्रारम्भ में श्री वेदव्यास जी ने धृतराष्ट्र को कहा कि यदि आप महाभारत का युद्ध देखना चाहते हैं तो मैं आपको दिव्य नेत्र दे सकता हूं, धृतराष्ट्र ने मना कर दिया | लेकिन कहा कि मैं महाभारत के युद्ध का समाचार जानना चाहता हूं इसलिए आप संजय को दिव्य नेत्र दे दीजिए | यह यहीं बैठ करके मुझको महाभारत का सत्य समाचार देते रहेंगे | वेदव्यास जी ने संजय को दिव्य नेत्र दे दिए | युद्ध प्रारंभ हो गया | युद्ध के दसवें दिन अर्जुन ने भीष्म पितामह को अपने बाणों से छलनी कर दिया | संजय ने जाकर धृतराष्ट्र को बताया कि भीष्म पितामह अर्जुन के बाणों से भूमि पर गिर पड़े हैं | तब धृतराष्ट्र ने कहा कि मुझे महाभारत के युद्ध के प्रारंभ से लेकर सारा वृत्तांत सुनाओ | संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत के युद्ध के प्रारंभ से जानकारी देना प्रारंभ किया यहां से श्रीमद्भगवद्गीता का प्रारंभ होता है | श्रीमद्भगवद्गीता कोई अलग ग्रंथ नहीं है, यह महाभारत में भीष्म पर्व का पच्चीसवां अध्याय है | महाभारत के भीष्म पर्व का पच्चीसवां अध्याय श्रीमद्भगवतगीता का पहला अध्याय है |