साक्षात भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी से निकला हुआ श्रीमद्भगवद्गीता एक परम रहस्य मय ग्रंथ है | भगवान के गुण, स्वरूप, उपासना तथा कर्म एवं ज्ञान का वर्णन जिस प्रकार गीता शास्त्र में किया गया है वैसा अन्य ग्रंथों में एक साथ मिलना कठिन है | वेदव्यासजी ने महाभारत में कहा है 'गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः' अर्थात गीता को सुगीता कहना चाहिए | गीता के अध्ययन के उपरांत अन्य शास्त्रों की आवश्यकता क्या है | गीता को ही अच्छी प्रकार से सुनना,पढ़ना-पढाना, मनन-चिंतन और धारण करना चाहिए, क्योंकि गीता स्वयं भगवान के मुख से निकली है | कहा भी गया है कि 'सर्व शास्त्र मयी गीता' अर्थात गीता सभी शास्त्रों का सार है ! कैसे ?
सभी शास्त्रों का मूल हैं वेद ! और वेद, ब्रह्मा जी के मुख से प्रकट हुए हैं ! और ब्रह्मा जी, कमल पुष्प से उत्पन्न हुए हैं ! और वो कमल का पुष्प, भगवान की नाभि से निकला है | अर्थात सबका मूल आधार हैं भगवान ! उन्हीं भगवान ने गीता को स्वयं अपने मुख से कहा है |
गीता तो गंगा-गायत्री से भी बढ़कर कही जा सकती है, क्योंकि गंगा भगवान के चरणों से निकली और गायत्री वेद का मंत्र है, जो ब्रह्मा जी के मुख से निकले हैं | गीता को भगवान से भी बढ़कर कहा जा सकता है, क्योंकि वाराह पुराण में भगवान ने स्वयं कहा है 'गीता श्रयोहं........ |
अर्थात भगवान कह रहे हैं कि - गीता मेरा सबसे अच्छा घर है | गीता के ज्ञान का सहारा लेकर ही मैं तीनों लोगों का पालन करता हूं | इसका मतलब है कि गीता भगवान का स्वास है, गीता भगवान का हृदय है, भगवान की शब्दरूपी मूर्ति है, गीता भगवान का रहस्यों से भरा हुआ गंभीर उपदेश है |
भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली गीता जी का संकलन वेदव्यास जी ने एक लाख श्लोक वाले महान ग्रंथ महाभारत में किया है | भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी का उपदेश कहीं श्लोक में किया था तो कहीं प्रवचन में किया था | वेदव्यास जी ने भगवान के प्रवचन अंश को और अर्जुन-संजय-धृतराष्ट्र के वचनों को श्लोक बद्ध कर दिया | इस प्रकार वेदव्यास जी ने भगवान के रहस्यमय उपदेश को 18 अध्याय और 700 लोगों में आबद्ध कर दिया | गीता ज्ञान का अथाह सागर है| श्रीगीताजी का तत्व समझने में बड़े-बड़े दिग्विजयी विद्वान, तत्व प्रवाचक, महात्माओं की वाणी भी कुंठित हो जाती है | गीता का पूर्ण रहस्य तो भगवान श्री कृष्ण ही जानते हैं | इसके बाद संकलनकर्ता व्यास जी और गीता सुनने वाले श्रोता अर्जुन का क्रम [नंबर] आता है | जिस प्रकार आकाश में गरुड़ भी उड़ते हैं और साधारण मच्छर भी ! इसी के अनुसार सभी को अपने-अपने भाव के अनुसार कुछ न कुछ अनुभव होता ही है | हम भी अपने गुरुजनों से प्राप्त शास्त्रों के अध्ययन से प्राप्त अनुभव को अपनी बुद्धि सामर्थ्य के अनुसार आपके समक्ष रखेंगे |
विचार करने पर प्रतीत होता है कि गीता का मुख्य तात्पर्य संसार समुद्र में पड़े हुए जीव को परमात्मा की प्राप्ति करवा देने में है | और इसके लिए गीता में ऐसे उपाय बताए गए हैं जिनसे मनुष्य अपने सांसारिक कर्तव्य कर्मो का भली-भांति आचरण करता हुआ भी परमात्मा को प्राप्त कर सकता है |
No comments:
Post a Comment