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Sunday, 10 November 2019

गीता सारं

Related imageसाक्षात भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी से निकला हुआ श्रीमद्भगवद्गीता एक परम रहस्य मय ग्रंथ है |    भगवान के गुण, स्वरूप, उपासना तथा कर्म एवं ज्ञान का वर्णन जिस प्रकार गीता शास्त्र में किया गया है वैसा अन्य ग्रंथों में एक साथ मिलना कठिन है |    वेदव्यासजी ने महाभारत में कहा है 'गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः' अर्थात गीता को सुगीता  कहना चाहिए | गीता के अध्ययन के उपरांत अन्य शास्त्रों की आवश्यकता क्या हैगीता को ही अच्छी प्रकार से सुनना,पढ़ना-पढाना, मनन-चिंतन और धारण करना चाहिए, क्योंकि गीता स्वयं भगवान के मुख से निकली है | कहा भी गया है कि 'सर्व शास्त्र मयी गीता' अर्थात गीता सभी शास्त्रों का सार है !  कैसे ? 
सभी शास्त्रों का मूल हैं वेद ! और वेद, ब्रह्मा जी के मुख से प्रकट हुए हैं ! और ब्रह्मा जी, कमल पुष्प से उत्पन्न हुए हैं !  और वो कमल का पुष्प, भगवान की नाभि से निकला है | अर्थात सबका मूल आधार हैं भगवान ! उन्हीं भगवान ने गीता को स्वयं अपने मुख से कहा है |
गीता तो गंगा-गायत्री से भी बढ़कर कही जा सकती है, क्योंकि गंगा भगवान के चरणों से निकली और गायत्री वेद का मंत्र है, जो ब्रह्मा जी के मुख से निकले हैं | गीता को भगवान से भी बढ़कर कहा जा सकता है, क्योंकि वाराह पुराण में भगवान ने स्वयं कहा है 'गीता श्रयोहं ........ | 
अर्थात भगवान कह रहे हैं किगीता मेरा सबसे अच्छा घर है | गीता के ज्ञान का सहारा लेकर ही मैं तीनों लोगों का पालन करता हूं | इसका मतलब है कि गीता भगवान का स्वास है, गीता भगवान का हृदय है,  भगवान की शब्दरूपी मूर्ति है, गीता भगवान का रहस्यों से भरा हुआ गंभीर उपदेश है | 
भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकली गीता जी का संकलन वेदव्यास जी ने एक लाख श्लोक वाले महान ग्रंथ महाभारत में किया है | भगवान श्री कृष्ण ने गीता जी का उपदेश कहीं श्लोक में किया था तो कहीं प्रवचन में किया था | वेदव्यास जी ने भगवान के प्रवचन अंश को और अर्जुन-संजय-धृतराष्ट्र के वचनों को श्लोक बद्ध  कर दिया | इस प्रकार वेदव्यास जी ने भगवान के रहस्यमय उपदेश को 18 अध्याय और 700 लोगों में आबद्ध कर दिया | गीता ज्ञान का अथाह सागर है| श्रीगीताजी का तत्व समझने में बड़े-बड़े दिग्विजयी  विद्वान, तत्व प्रवाचक, महात्माओं की वाणी भी कुंठित हो जाती है | गीता का पूर्ण रहस्य तो भगवान श्री कृष्ण ही जानते हैं | इसके बाद संकलनकर्ता व्यास जी और गीता सुनने वाले श्रोता अर्जुन का क्रम  [नंबर]  आता है | जिस प्रकार आकाश में गरुड़ भी उड़ते हैं और साधारण मच्छर भी ! इसी के अनुसार सभी को अपने-अपने भाव के अनुसार कुछ  कुछ अनुभव होता ही है | हम भी अपने गुरुजनों से प्राप्त शास्त्रों के अध्ययन से प्राप्त अनुभव को अपनी बुद्धि सामर्थ्य के अनुसार आपके समक्ष रखेंगे |
विचार करने पर प्रतीत होता है कि गीता का मुख्य तात्पर्य संसार समुद्र में पड़े हुए जीव को परमात्मा की प्राप्ति करवा देने में हैऔर इसके लिए गीता में ऐसे उपाय बताए गए हैं जिनसे मनुष्य अपने सांसारिक कर्तव्य कर्मो का भली-भांति आचरण करता हुआ भी परमात्मा को प्राप्त कर सकता है | 

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