क्यों होता है व्रत पर्व के पुण्यकाल / दिवस आदि में मतभेद /वैमत्य ??
सनातन हिन्दू धर्म की एक पहचान विभिन्न व्रत पर्वों से भी होती है |
सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार यदि देखा जाए तो प्रत्येक दिन ही कोई न कोई व्रत पर्व त्यौहार की उपस्थिति प्राप्त होती है|
इसलिए सनातन हिन्दू धर्म को व्रत पर्वों का धर्म कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी ||
व्रत पर्वों से भरपूर सनातन धर्म के इन व्रत पर्वों में कभी-कभी किसी-किसी व्रत पर्व के पुण्यकाल, दिन के सम्बन्ध में मतभेद हो जाने से सम्बंधित व्रत पर्व दो दिन मना लिया जाता है , जोकि शास्त्रानुसार कदापि उचित नहीं |
किन्तु यहाँ प्रश्न ये उठता है कि किसी भी व्रत पर्व को दो दिन मनाये जाने की मति समाज में कैसे , कहाँ से प्राप्त होती है ?
क्या इस सम्बन्ध में सनातन हिन्दू समाज दोषी है ?
इसके पीछे क्या कारण है ?
आइये ! इस सम्बन्ध में कुछ चर्चा करते हैं ----
सनातन हिन्दू धर्म की एक पहचान विभिन्न व्रत पर्वों से भी होती है |
सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार यदि देखा जाए तो प्रत्येक दिन ही कोई न कोई व्रत पर्व त्यौहार की उपस्थिति प्राप्त होती है|
इसलिए सनातन हिन्दू धर्म को व्रत पर्वों का धर्म कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी ||
व्रत पर्वों से भरपूर सनातन धर्म के इन व्रत पर्वों में कभी-कभी किसी-किसी व्रत पर्व के पुण्यकाल, दिन के सम्बन्ध में मतभेद हो जाने से सम्बंधित व्रत पर्व दो दिन मना लिया जाता है , जोकि शास्त्रानुसार कदापि उचित नहीं |
किन्तु यहाँ प्रश्न ये उठता है कि किसी भी व्रत पर्व को दो दिन मनाये जाने की मति समाज में कैसे , कहाँ से प्राप्त होती है ?
क्या इस सम्बन्ध में सनातन हिन्दू समाज दोषी है ?
इसके पीछे क्या कारण है ?
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