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Monday, 25 April 2016


सनातन राष्ट्र धर्म संस्कृति की रक्षा सेवा के लिए शास्त्र और शस्त्र के संयुक्त प्रयोग के उपदेशक 

भगवान श्री परशुराम जी की जयन्ती [ 08 मई 2016 रविवार ] के उपलक्ष्य में सूक्ष्म चर्चा >>>>>>> 


?????? क्या करे ब्राह्मण जब धर्म पर संकट आये ??????  

 मनु स्मृति में ब्राह्मण के छह कर्म बताये गए हैं --  

अध्यापनमध्ययनम्  यजनम् याजनम् तथा ! 
दानम् प्रतिग्रहम् चैव ब्राह्मणानामकल्पयत् !! 

अर्थात -- पढ़ना , पढ़ाना , यज्ञ करना , यज्ञ कराना , दान देना , दान लेना ये छह कर्म ब्राह्मणो के हैं !! 

किन्तु इसके साथ ये भी अवश्य ध्यान रखें कि ब्राह्मण

 केवल शास्त्र के अध्ययन अध्यापन 

 [ पढ़ने , पढ़ाने , यज्ञ करने , यज्ञ कराने , दान देने और  दान लेने आदि] 

 तक ही सीमित् ना रहे  -- 

 सनातन राष्ट्र धर्म संस्कृति की रक्षा सेवा के लिए शस्त्र प्रयोग की आज्ञा भी दी गयी है मनु स्मृति  में !!

 स्त्रम् द्विजाति भिर्ग्राह्यम् धर्मो यत्रोरुध्यते 
द्विजातीनाम् च वरणानाम् विप्लवे काल कारिते !! [ मनु स्मृति ]

अर्थात -- जब द्विजातियो को अपने धर्म पालन से रोका जाए 
अथवा समय के प्रभाव से वर्ण विप्लव [ वर्णाश्रम व्यवस्था नष्ट ] होने लगे , 
उस समय द्विजो [ क्षत्रिय, वैश्य के साथ साथ ब्राह्मण ]   को भी शस्त्र ग्रहण करना चाहिये !!!

>>>>  अर्थात धर्म की रक्षा  के लिये की गयी हिंसा धर्म ही है !! 

>>> ध्यान दें -- द्विज का अर्थ ब्राह्मण क्षत्रिय  वैश्य है !! 

Thursday, 21 April 2016

संसार के छः सुख 

अर्थागमो नित्यमरोगिता च  प्रिया च भार्या प्रियवादिनी च।
वश्यश्च पुत्रोर्थकरी च विद्या षड जीव लोकस्य सुखानि राजन।।

>> अर्थात ---  इस नश्वर संसार में ये छः  सुख  बताए गए हैं ------

01> नित्य प्रति [ रोज ] धन की प्राप्ति होते रहना !
02 > स्वास्थ
03 > मधुर वचन बोलने वाली  और
04 > अपने [अर्थात पति के ] अनुकूल  आचरण करने वाली पत्नी
05 > आज्ञाकारी पुत्र और 
06 > ऐसी विद्या जिससे धन की प्राप्ति हो [अर्थात -अध्ययन की हुई  विद्या  से धन की  प्राप्ति होना] !! 

Monday, 18 April 2016

व्रत पर्व प्रधान सनातन धर्म में स्वयं सिद्ध मुहूर्तों की श्रृंखला में अक्षय तृतीया का अपना पृथक महत्वपूर्ण स्थान है ! अक्षय तृतीया का पर्व वसंत और ग्रीष्म ऋतु के संधिकाल का महोत्सव है ! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की मध्यान्ह व्यापिनी [ दोपहर के समय रहने वाली ]  तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है !! अक्षय तृतीया मैं तृतीय तिथि , सोमवार और कृत्तिका या रोहिणी नक्षत्र का संयोग अच्छा माना जाता है ! इसी तिथि में नर-नारायण और हयग्रीव अवतार हुए थे ! ध्यान दें -- परशुराम जी का अवतार भी इसी तिथि में  हुआ था किन्तु परशुराम जी प्रदोष व्यापिनी [ सूर्यास्त के बाद रात्रि के प्रथम प्रहार मैं रहने वाली ] तृतीया को हुआ था !अक्षय तृतीय अति पवित्र  फल देने वाली  है !!   इस दिन किये हुए  स्नान, दान, होम जप आदि सभी कर्मों का फल अनन्त होता है - सभी अक्षय हो जाते हैं ! यत्किंचिद् दीयते दानं स्वल्पम् वा यदि वा बहु ! तत सर्वम् अक्षयम् यस्मात् तनयम अक्षया स्मृता !![भविष्ये ]  अन्यत्र भी  कहा गया है -   स्नात्वा हुत्वा च दत्वा च जप्त्वानन्तफलं लभेत !!इसीलिए इस तिथि का नाम अक्षया है ! चारो युगों मैं त्रेता युग का आरम्भ भी इसी अक्षय तृतीया  से हुआ  था ! इसी से अक्षय तृतीया को युगादि तिथि भी कहते है ! इसी तिथि को चारो धामों मैं से एक धाम श्री बद्रीनाथ धाम के पट भी खोले जाते हैं ! अक्षय तृतीया को ही वृंदावन मैं श्री बिहारी जी के [चरणों के दर्शन ]  होते हैं !! सनातन धर्म के अनुयायी इस पर्व मैं  के अधिष्ठाता देवताओ [नर-नारायण ,हयग्रीव और यदि इसी दिन परशुराम जी की जयन्ती भी निश्चित हो तो परशुराम जी ] का पूजन करके सत्पात्र को जल से भरे कलश , पंखे , चरण पादुकाएं, छाता, गौ , भूमि , स्वर्णपात्र आदि का दान करते हैं !! इससे अक्षय पूण्य की प्राप्ति होती है !!
हनुमान जयन्ती 
किसी भी देवता की अधिकृति या जन्म तिथि एक होती है किन्तु श्री हनुमान जी की दो मानते हैं ! यह विशेषता  है !  ०१- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा और ०२ - कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी ! 

किसी भी देवता की अधिकृति या जन्म तिथि एक होती है किन्तु श्री हनुमान जी की दो मानते हैं ! यह विशेषता  है !  ०१- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा और ०२ - कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी !  इस विषय के ग्रंथो में इन दोनों के उल्लेख्य अवश्य हैं , परन्तु आशयों में भिन्नता है ! पहला 'जन्मदिन' है और दूसरा 'विजयाभिनन्दन' का महोत्सव !

उत्सव सिंधु के अनुसार -- ऊर्जस्य  चासिते पक्षे स्वास्त्याम भौमै कपीश्वरः ! मेष लग्ने अंजनी गर्भात्  शिवः प्रादुर्भूत स्वयं !! 
अर्थात ---- कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी , मंगलवार  को स्वाती नक्षत्र और मेष लग्न में अंजनी के गर्भ से हनुमानजी के रूप में स्वयं शिवजी उत्पन्न हुए थे ! 

व्रतरत्नाकर में  भी यही कहा है --- 
कार्तिकस्यासिते  पक्षे भूतायाम च महानिशि ! भौमवारेंजनादेवी हनमंतमजीजनत !! 
अर्थात ---- कार्तिक  कृष्ण  चतुर्दशी , मंगलवार  को महानिशा  में अंजना देवी ने हनुमानजी को जन्म दिया था ! 

दूसरी तरफ हनमदुपासना कल्पद्रुम ग्रन्थ में  कहा गया है ---- चैत्र शुक्ल पूर्णिमा , मंगलवार  को मूँज मेखला से युक्त, कौपीन  से संयुक्त और यज्ञोपवीत से विभूषित हनुमान जी का जन्म हुआ !
 चैत्रे मासि  सिते पक्षे पौर्णमास्याम् कुजेहनि ! 
मौंजी मेखलया युक्तः कौपीन परिधारक: !! [ह० क ० ] 

वाल्मीकीय रामायण में श्री हनुमानजी के जन्म का कथानक [किष्किन्धाकाण्ड सर्ग ६६ और उत्तर काण्ड सर्ग ३५ में ] विस्तार से  है !! परन्तु वहां पर चैत्र या कार्तिक का नाम नहीं है ,  सम्भव है की    कल्प भेद से ग्रंथो  में मासादि का नाम पृथक-पृथक  लिखा गया हो !! 

 इन सब को देखने से ये तथ्य निकलता है  कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की रात्री में हनुमान जी का जन्म हुआ था और चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को सीता की खोज ,लंका दहन , समुद्रोल्लंघन , आदि मैं हनुमानजी के विजयी होने और निरापद वापस लौटने  उपलक्ष्य में वानरों ने हर्षोन्मत्त होकर मधुवन में उत्सव मनाया था इसी को विजयाभिनन्दन उत्सव कहा गया ! अस्तु !! "अधिकस्याधिकम" फलम के अनुसार  यदि दोनों दिन  उत्सव किया जाए तो  होगा  ही   !! 


Wednesday, 6 April 2016

 हिन्दू नव वर्ष 08 अप्रैल 2016, शुक्रवार  


> चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात प्रथम नवरात्रि को हिन्दू नववर्ष प्रारम्भ होता है !!

> इस संवत्सर का नाम सौम्य संवत्सर है !! इस वर्ष का राजा शुक्र और मंत्री बुध है !!

> इस दिन सभी हिन्दुओ को अपने- अपने निवास स्थान पर अपने-अपने सम्प्रदाय / परम्परा के अनुसार लगे हुए ध्वजो को बदल कर नवीन ध्वज लगाना चाहिए [[ ध्यान दें कि ------ हर हिन्दू के निवास स्थान पर  अपने-अपने सम्प्रदाय / परम्परा के अनुसार कोई भी ध्वज बिना संकोच के जरूर लगा होना चाहिए , अगर आपके यहाँ कोई ध्वज नहीं लगा है तो अबकी बार से ही प्रारम्भ करें ,,.... सामान्यतया हिन्दुओं को भगवा ध्वज लगाना चाहिए !! पुनः विशेष ध्यान दें  >>> वास्तु के अनेक दोषो का निवारण  ध्वज के देवता अकेले ही कर  देते हैं ]]  !! 

> आम पीपल आदि के पत्तो से बने हुए तोरणादि से मुख्य द्वार को सुशोभित करें !!

> मंगल [ पदार्थो से ] स्नान करके श्री गणपति और अपने इष्ट देव , कुलदेव , ग्रामदेव का पूजन करें ,, तदुपरांत ब्राह्मण-गुरु की पूजा करें !!



> पंचांग /पत्रा पूजन करें तथा ज्योतिषी का सत्कार करके उनसे नवीन संवत्सर का फलादि श्रवण करें !!

> प्रातः काल  कड़वे नीम्ब के कोमल पत्ते , पुष्प लाएं ,उसमें काली मिर्च , हींग , सेंधा नमक , अजवायन , जीरा , खांड मिलाकर चूर्ण बनाये , कुछ इमली भी मिला लें !! खाली पेट [या कुछ खाकर भी] इस चूर्ण का सेवन करें ! इस प्रयोग से वर्ष भर रक्त विकार नहीं होता और अनेक रोगों की शांति रहती है !!

> स्त्रियाँ , शिशु आदि सुन्दर वस्त्राभूषण धारण करके उत्सव मनाएं !!

> याचकों [ भिखारियों ]  यथाशक्ति दानादि से प्रसन्न करें !!

> भजन-कीर्तन , गीत वादन-गायन , कथा श्रवणादि करते हुए यह सम्पूर्ण दिन आनंद से व्यतीत करें !!

> आपस में एक - दूसरे को  हिन्दू नव वर्ष  की शुभ कामनाये देना ना भूलें !! 



मनुष्य योनि में जन्म ,,भगवान की कृपा --- 

दुर्लभम त्रयमेव एतद देवानुग्रह हेतुकम !
मनुष्यत्वं मुमुक्षत्वं महापुरुष संश्रयः !! 

अर्थात ---  मनुष्यत्व यानि मानव योनि में जन्म प्राप्त होना ,, मुमुक्षत्व यानि मोक्ष प्राप्ति की इच्छा / भावना होना और महापुरुषों  का संग --  ये तीनों ही दुर्लभ हैं ! इन तीनो की प्राप्ति बिना भगवान की कृपा के नहीं हो सकती !!  
ईश्वर सदा  सर्वदा सर्वत्र विद्यमान है -----------


कही हम हमारी आवश्यकताओं / इच्छाओं के पूरा ना  होने के लिए ईश्वर को दोष तो नहीं दे रहे है??? 
अथवा  ईश्वर की सत्ता के होने ना होने के द्वंद्व मैं तो नहीं फंस गए हैं ??


ईश्वर मैं , ईश्वर की सत्ता मैं श्रद्धा विशवास की कमी होने लगे , तो समझ लेना चाहिए कि ------ 
या तो कुसंग हो रहा है या पाप की कमाई आ रही है  !! 


ईश्वर सदा  सर्वदा सर्वत्र विद्यमान है ----------- ईशावास्यम इदं सर्वं यत्किंचित जगत्यां जगत !! [ ईशावास्योपनिषद ]  
हरि व्यापक सर्वत्र समाना !! [श्री तुलसीदास ]