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Monday, 18 April 2016

व्रत पर्व प्रधान सनातन धर्म में स्वयं सिद्ध मुहूर्तों की श्रृंखला में अक्षय तृतीया का अपना पृथक महत्वपूर्ण स्थान है ! अक्षय तृतीया का पर्व वसंत और ग्रीष्म ऋतु के संधिकाल का महोत्सव है ! वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की मध्यान्ह व्यापिनी [ दोपहर के समय रहने वाली ]  तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है !! अक्षय तृतीया मैं तृतीय तिथि , सोमवार और कृत्तिका या रोहिणी नक्षत्र का संयोग अच्छा माना जाता है ! इसी तिथि में नर-नारायण और हयग्रीव अवतार हुए थे ! ध्यान दें -- परशुराम जी का अवतार भी इसी तिथि में  हुआ था किन्तु परशुराम जी प्रदोष व्यापिनी [ सूर्यास्त के बाद रात्रि के प्रथम प्रहार मैं रहने वाली ] तृतीया को हुआ था !अक्षय तृतीय अति पवित्र  फल देने वाली  है !!   इस दिन किये हुए  स्नान, दान, होम जप आदि सभी कर्मों का फल अनन्त होता है - सभी अक्षय हो जाते हैं ! यत्किंचिद् दीयते दानं स्वल्पम् वा यदि वा बहु ! तत सर्वम् अक्षयम् यस्मात् तनयम अक्षया स्मृता !![भविष्ये ]  अन्यत्र भी  कहा गया है -   स्नात्वा हुत्वा च दत्वा च जप्त्वानन्तफलं लभेत !!इसीलिए इस तिथि का नाम अक्षया है ! चारो युगों मैं त्रेता युग का आरम्भ भी इसी अक्षय तृतीया  से हुआ  था ! इसी से अक्षय तृतीया को युगादि तिथि भी कहते है ! इसी तिथि को चारो धामों मैं से एक धाम श्री बद्रीनाथ धाम के पट भी खोले जाते हैं ! अक्षय तृतीया को ही वृंदावन मैं श्री बिहारी जी के [चरणों के दर्शन ]  होते हैं !! सनातन धर्म के अनुयायी इस पर्व मैं  के अधिष्ठाता देवताओ [नर-नारायण ,हयग्रीव और यदि इसी दिन परशुराम जी की जयन्ती भी निश्चित हो तो परशुराम जी ] का पूजन करके सत्पात्र को जल से भरे कलश , पंखे , चरण पादुकाएं, छाता, गौ , भूमि , स्वर्णपात्र आदि का दान करते हैं !! इससे अक्षय पूण्य की प्राप्ति होती है !!

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