इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है
धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो
में अमृत से भरा कलश था।
भगवान धन्वन्तरि चूंकि
कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस
अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।
इसके पीछे यह कारण है कि चन्द्रमा मन का प्रतीक है और चांदी चंद्रमा की धातु है जो शीतलता
प्रदान करता है और मन को शांत करती है।
धनतेरस
की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर दीप जलाने की शास्त्रीय व्यवस्था भी है।
एक लोक
कथा है >> किसी समय में एक राजा थे जिनका
नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। |ज्योंतिषियों ने जब बालक की
कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद
वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को
ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक
राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने
गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के
पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के
प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता
उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार
उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से
एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल
मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले - हे दूत !
अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता
हूं सो सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात मै जो प्राणी मेरे नाम से
पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं
रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते
हैं।
कार्तिक के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को सायंकाल के समय एक दीपक को तिल के तेल से भरें |
उसमें [ यदि उपलब्ध हो तो नवीन ] रूई की बत्ती रखें |
घर के द्वार के एक तरफ अन्न की धेरी पर स्थापित करके दक्शिन दिशा की ओर बत्ती का मुख करके दीपक को प्रज्वलित करै |
रोली चावल पुष्प आदि से उसका पूजन करें |
इसके बाद दक्शिन दिशा की ओर अपना मुह करके हाथ जोरकर प्रार्थना करै --
> म्रित्युना दंद पाशाभ्याम कालेन श्यामया सह |
त्रयोदश्याम दीपदानात सूर्यज: प्रीयताम मम ||
ये दीपक रात्रि मैं जितना सम्भव हो देर तक जलते रहना चाहिये ||
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