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Saturday, 29 October 2016





व्रतोत्सव के अनुसार कार्तिक कृष्ण अमावस्या को दीपावली या काल रात्रि  भी कहा जाता है। 

''कार्तिके मास्यमावास्या तस्याम दीप प्रदीपनम।

शालायाम ब्राह्मणः कुर्यात स गच्छेत परमम् पदम्''।। 
अर्थात कार्तिक कृष्ण अमावस्या को घरों में दीपमालिका बनाने से परम पद प्राप्त होता है।  
ब्रह्म पुराण के अनुसार  कार्तिक कृष्ण अमावस्या को अर्ध रात्रि के समय लक्ष्मी महारानी सद्गृहस्थों  मकानों में जहां - तहां विचरण करती हैं। 



भविष्योत्तर पुराण के अनुसार कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रातः स्नानादि करके देव 

पितर और पूज्यजनों का अर्चन करें।  

प्रदोष काल में  सूर्यास्त के समय घर दूकान आदि को दीप माला से सजाये। 

प्रदोष काल में ही अपने रीति रिवाज के अनुसार अथवा विद्वान ब्राह्मण के निर्देशानुसार

श्रीगणेश लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए। 

>> इसके बाद दरवाजे के बाहर की ओर दीवाल पर 'ॐ श्री गणेशाय नमः', 'स्वास्तिक चिन्ह'' शुभ लाभ' आदि मांगलिक शब्द लिखे जाने चाहिए। 

इन शब्दों पर रोली चावल पुष्प चढ़ाकर पूजन करै और कहें - श्री देहलीविनायकाय नमः। 

>> इसके बाद स्याही युक्त दावात [ आज के अनुसार हर लगाने वाला स्टाम्प पैड ] को 

चावल पुष्प की ढेरी पर रखकर उसमें सिंदूर / रोली से स्वास्तिक बना दें।

कलावा बांधै
रोली चावल पुष्प चढ़ाकर पूजन करै और कहें - श्रीमहाकाल्यै नमः। 

>> इसके बाद लेखनी [ कलम , पैन , पेन्सिल आदि ] पर कलावा बाँध कर सामने रखें।रोली चावल पुष्प चढ़ाकर पूजन करै और कहें - श्री लेखनीस्थायै देव्यै नमः। 

>> इसके बाद [ यदि बही खाता हो तो बही खाता अन्यथा ] किसी नवीन कापी तथा कपरे की एक थैली मै रोली / सिंदूर से स्वास्तिक चिन्ह बनाये
थैली मै पांच हल्दी की गाँठ , कुछ धनिया , पांच कमलगट्टे , अक्षत , दूर्वा , और द्रव्य रखै
कलावा बांधै
रोली चावल पुष्प चढ़ाकर पूजन करै और कहें - श्री वीणा पुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नमः। 

>> इसके बाद रुपया पैसा धन रखे जाने वाले पात्र [ सन्दूक ] मै रोली / सिंदूर से स्वास्तिक चिन्ह बनाये
कलावा बांधै
रोली चावल पुष्प चढ़ाकर पूजन करै और कहें - श्री कुबेराय नमः। 

>> इसके बाद हल्दी , धनिया कमलगट्टे अक्षत , दूर्वादि से युक्त सुपूजित थैली तिजोरी मै रखै

>> इसके बाद [ यदि आवश्यक हो तो तराजू पर रोली / सिंदूर से स्वास्तिक चिन्ह बनाये| कलावा बांधै
रोली चावल पुष्प चढ़ाकर पूजन करै और कहें - श्री तुलाधिष्ठातृ देवतायै नमः।                                  

>> इसके बाद एक पात्र में अनेक दीपकों के बीच में तिल के तेल से भरा हुआ चार मुहँ
का दीपक रखकर सब दीपकों को प्रज्वलित करै
सब दीपकों पर रोली चावल पुष्प चढ़ाकर पूजन करै और कहें - श्री दीपावल्यै नमः। 

>> अपने आचार के अनुसार श्री गनेश लक्ष्मी आदि सब देवताओ को संतरा , ईख , धान का लावा [ खील ] समर्पित करे

>> इसके बाद आरती करे

>> तदुपरांत दीपको से घर दूकान आदि स्थलों को सुसज्जित करना चाहिए। 

>> रात्रि में [ यदि सम्भव हो तो श्री गोपाल सहस्रनाम , श्री लक्ष्मी सहस्रनाम , श्री ललिता सहस्रनाम का पाठ करते हुए ] जागरण करना चाहिए। 

>> आधी रात के बाद सूप और डमरू आदि को बजाकर अलक्ष्मी को निकाले। 


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