Search This Blog

Friday, 28 October 2016

01- छोटी दीपावली >>

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चौदस  ,,  नर्क चतुर्दशी ,, रूप चतुर्दशी या छोटी दीपावली के नाम से

भी जाना जाता है । 

आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी दुराचारी और दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था।

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

तेल मर्दन एवम स्नान >>

शास्त्रो के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल शौच दंत धावन आदि करके हाथ मे

जल लेकर आगे लिखा हुआ संकल्प करे >> 

यम लोक दर्शन अभाव कामोहम अभ्यंग स्नानम करिष्ये  | 

इसके उपरांत सारे शरीर पर तिल का तेल लगाकर हल से उखड़ी हुई मिट्टी तुम्बी और अपामार्ग 

(उलटा चिरचिटा ) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से सभी पापों तथा नरक से मुक्त हो

स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं।

------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

यम तर्पण  >>

कृत्य तत्वार्णव  के अनुसार आज के ही दिन सायंकाल के समय दक्षिण दिशा की ओर मुँह

करके तथा जनेउ को कंठी [ गले मेँ गोल आकार से लपेट ]  करके जल [ काले तथा सफेद 

दोनो प्रकार के ] तिल और कुश लेकर देवतीर्थ से तर्पण करे [ जल दें ] ।  >>

  • ·         यमाय नम:

  • ·         धर्मराजाय नम:

  • ·          मृत्यवे नम:

  • ·         अनंताय नम:

  • ·         वैवस्वताय नम:

  • ·         कालाय नम:

  • ·         सर्व भूतक्षयाय नम:

  • ·         औदुम्बराय नम:

  • ·         दध्नाय नम:

  • ·         नीलाय नम:

  • ·         परमेष्ठिने नम:

  • ·         व्रिकोदराय नम:

  • ·         चित्राय नम:

  • ·         चित्रगुप्ताय नम:

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

दीपदान >>

कृत्य चंद्रिका के अनुसार आज के ही दिन सायंकाल को प्रदोष के समय [सूर्यास्त के बाद ] तिल के 

तेल से भरे हुये , प्रज्वलित और सुपूजित [ पुजा किए हुये ] चौदह दीपक सामने रखकर , हाथ मे 

जल लेकर आगे लिखा हुआ संकल्प करे >> 

यम मार्ग अंधकार निवारणार्थे चतुर्दश दीपानाम दानम करिष्ये  | 

इसके उपरांत इन चौदह दीपको को देवताओ के मंदिर मे , बाग – बगीचे मे , गली – रास्तो मे 

पशुस्थल मे तथा अन्य सून्य स्थलो पर रखै | इस प्रकार के दीपको से यमराज प्रसन्न होते है ||

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>

चतुर्मुख दीप >>

लिंग पुराण के अनुसार आज के ही दिन सायंकाल के समय ही चार बत्तियो के दीपक को प्रज्वलित 

करके देवस्थान पर या आंगन मे रखे और निम्न श्लोक कहे > 

दत्तो दीपश्चतुर्दश्याम नरक प्रीतये मया | चतुर्वर्ति समायुक्त: सर्व पापा पनुत्तये ||

>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>

आतिश्बाजी >>

इसके उपरांत प्रज्वलित किंचित उल्का [ आतिश्बाजी ] का प्रयोग करे और निम्न श्लोक कहे >>

अ‍ग्नि दग्धाश्च ये जीवा ये अपि अदग्धा: कुले मम | उज्ज्वल ज्योतिषा दग्धा: ते यांति परमाम 

गतिम ||


इससे उल्का [ अग्नि आदि ] से मृत्यु को प्राप्त हुए जीवो की सद्गति होती होती है ||

No comments:

Post a Comment